...

4 views

कटी पतंग बची डोर

हर तरफ हल्बा है ये ही,
हर तरफ ये ही शोर। तिल के लड्डू खाने में, कटी पतंग बची डोर।।
सकांति त्यौहार हैं मित्रों,
दान धर्म उपकार का रहे ना कोई जन वंचित, खुशियों से इस संसार का।
पर सेवा ही परम धर्म हैं,
शुभ हो जाए हर भोर तिल के लड्डू खाने में, कटी पतंग बची डोर।१।
ओढ़ाने और पहनाने का,
इस पर्व पर हैं रिवाज छू के चरण बुजुर्गों के, करते हम खुद पर नाज।
मिट जाती हैं सब दुख पीड़ा,
होती खुशियाँ चहुँओर तिल के लड्डू खाने में, कटी पतंग बची डोर।२।
देने से कुछ कम नहीं होता,
बढ़ जाते हैं कोष खुशियाँ गम आते रहते हैं, नहीं किसी का दोष। सब की गाड़ी वो ही हाँके,
चले ना 'अंस' का जोर तिल के लड्डु खाने में,
कटी पतंग बची डोर।३।
हर तरफ हल्बा है ये ही,
हर तरफ ये ही शोर।
तिल के लड्डू खाने में,
कटी पतंग बची डोर।।
© 🄷 𝓭𝓪𝓵𝓼𝓪𝓷𝓲𝔂𝓪