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अपनों को बचाने में अपने खो रहे हैं।।
अपनों को बचाने में अपने खो रहे हैं ,
सपनों को बचाने से सपने खो रहे हैं।।
जो साथ थे , साथ चले हमेशा बेवजह।
आज वजह है तो भी देर तक सो रहे हैं।
अपनों को बचाने में अपने खो रहे हैं।।

रूठना मानना भिड़ना भिड़ाना लगा रहता है ,
सुनना सुनाना बातें बनाना , बहुत होता है ।।
क्यों हम नए दोस्त बना कर , नए बीज बो रहे हैं।
शुद्धि के लिए किसी की, हम पाप धो रहे हैं।
अपनों को बचाने में अपने खो रहे हैं।।

सजा रहे घर सदा बंधनों से, रिश्तों से ।
सज़ा न मिले किसी भी अपने को कभी ।।
दुआ मांग रहे हो सबकी सलामती की रोज कहते हो खुश रहो।।
दूर हो सब पा नही सकते ,
जो पा गए उनको पा कर भी खो रहे हैं ।
क्यों सबकुछ चाहते हैं ,कुछ और की ख्वाहिश में रो रहे हैं।।
अपनों को बचाने में अपने खो रहे हैं।।

संदेश रचित
प्रणाम कर रहा हूं,
खुश रहो कहते हो।।

© SandeshAnkita