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ये ज़रूरी नहीं विरोध करने वाला दुश्मन ही हो...
ये ज़रूरी तो नहीं हर काम में अपना मन ही हो।
कोन कहता है इज़हारे हुनर को अंजुमन ही हो।।
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हो सकता है उसका अंदाजे मोहब्बत तल्ख़ हो,
ये ज़रूरी नहीं विरोध करने वाला दुश्मन ही हो।।
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कभी कभी क़फिले लूट जाते हैं अपनों के बीच,
ज़रूरी नहीं सफ़र में लूटने वाला रहजन ही हो।।
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ये तो आँखें है साहब इनका कोई मौसम नहीं है,
बारिश के लिए ज़रूरी नहीं है कि सावन ही हो।।
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मेरा सितमगर कितना दिलदार है हर बार देता है,
ताज़ा नये नये,चाहें जख्मों से भरा दामन ही हो।।
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किसी की मुस्कुराहट को समझ पाना नहीं आसां,
ज़रूरी नहीं "सिफ़र" उसके चेहरे पे शिकन ही हो।।
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© संजय सिफ़र
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