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ज़ख्म
"काली रातों ने बताया हमें ,
टूट के वो पत्ता आज भी हरा है,
कतरा जो ज़मीं पर गिरा तो जाना,
इश्क़ का ज़हर उन्हे भी पीना पड़ा है,
मुसाफिर कहलाया करता था,
किसी ज़माने में जो,
आज वही रास्ते में खड़ा है,
इतने करीब से न देखिए हमें,
ये ज़ख्म कबखत्त,
अभी तो भरा है"
© Musafir
टूट के वो पत्ता आज भी हरा है,
कतरा जो ज़मीं पर गिरा तो जाना,
इश्क़ का ज़हर उन्हे भी पीना पड़ा है,
मुसाफिर कहलाया करता था,
किसी ज़माने में जो,
आज वही रास्ते में खड़ा है,
इतने करीब से न देखिए हमें,
ये ज़ख्म कबखत्त,
अभी तो भरा है"
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