...

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एक ख़त
तुम हमारे क्या होते,
हम तो ख़ुद अपने मुकद्दर में नहीं,
बरसों से कई जगह रह रहे हैं,
बस नहीं रहे तो अपने ही घर में नहीं।।

वैसे घायल करने को तो उसकी नज़रें ही काफी हैं,
ऐसे हमारा सीना छलनी करदे,
इतनी धार तो किसी खंजर में नहीं।।

सर झुकाकर मिलते हैं लोगों से,
ये हमारी तेहज़ीब है,
जबरन हमसे सजदा करवा ले,
इतनी भी जुर्रत किसी दर में नहीं।।

बुझाता होगा प्यास ज़माने की,
एक कतरे की प्यास बुझा सके,
इतना पानी किसी समंदर में नहीं।।

जो खुशबू आ रही थी,
उस रोज़ उसके दुपट्टे से,
वैसी खुशबू जहाँ के,
किसी इतर में नहीं।।

बड़े लोगों के हुनर बोलते हैं ज़माने में,
हम लोगों की दुआओं में रहते हैं,
ख़बर में नहीं।।

हमेशा हमारे दिल में मेहफूज़ रहेगा वो,
क्या हुआ जो वो दूर है,
हमारी नज़र में नहीं।।

वही शख्स सबसे पहले हाथ छुड़ाकर गया,
जो ये कहता था मंज़िल पर पहुँच कर ही हाथ छोड़ेंगे,
बीच सफ़र में नहीं।।
© Himanshu