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बंद कोठरी में कैद एक अबला की कहानी.....
बंद कोठरी में कैद एक अबला की कहानी ।
हर रोज बुनती थी सपने कैद से निकल जाने की ,

समाज की बड़ियों ने जकड़ रखा था उसे ,
परिवार की मान मर्यादा का ताला लगा था कमरे में ,
सारी इज्जत का बोझ लाद दिया उसके कंधो पर ,

फिर भी वह हिम्मत दिखा कर उठ खड़ी हुई,
खोलना चाहा ताला कोठरी का ,
फिर सामने आ खड़ी हुई दीवार बनकर परिवार की मर्यादा ,
सहम गई वह ये सोच कर
कर लेती फिर से खुद को उन बेड़ियों में कैद ,
सिसकती हुई जमी पर बैठ गई
अंदर ही अंदर घुट गई ,
बह रहे थे आंसू , हिम्मत नहीं करती उन्हें पोछने की ।

बंद कोठरी में कैद एक अबला की कहानी

पर क्या करती वह खुद को तो बांध लिया उसने बंधन में ,
सपनो को न बांध सकी ,
आखिर वह भी खुले आसमान में उड़ ना चाहती ,
पर कैसे तोड़े उन समाज की बड़ियों को ,
कैसे लांघे उस दरवाजे को ,
कमजोर बना दिया था उसे कहानी सुना कर ,
दिमाग के हर कोने में डर था ,
लेकिन आजादी वह भी चाहती थी।

एक दिन निकली वह सारी हदें तोड़ कर ,
उड़ने लगी खुले आसमान में पंख फैलाए अरमानों के ,
मेहसूस करने लगी आजादी को ,
यहां जाती वहां जाती कुछ ही पल में सब कुछ घूमना चाहती ,
सपने उसके पूरे होते दिखने लगे ,
खुशी का न था ठिकान ,
झूम झूम के नाच रही थी वह ,
फूलों की वादियों में घूम रही थी वह ,

फिर अचानक उस मोड़ पर आई वह ,
जहां मानव रूपी भेड़िए खड़े थे ,
रास नहीं आई उन्हें उसकी आजादी ,
देख कर उस पर झपट पड़े ,
बेताब थे अपनी भूख मिटाने को ,

शरीर कांप रहा था , धड़कने बड़ गई ,
पशीने में वह भीग गई,

आंखे खुली तो देखा ये सपना था
लेकिन डर ने उसे और डराया।
न उसने फिर कभी आजादी के सपने गड़े ,
न उसने फिर कभी उस कोठरी से बाहर जाना चाहा ,

दम तोड़ दिया उसकी हिम्मत ने ,
अब अच्छी लगने लगी उसे समाज की बेडिया।
स्वीकार कर लिया उसने अपनी रक्षा नहीं कर पाएगी ,
स्वीकार कर ली किसी की अधीनता।
लगने लगी वह कोठरी ही सुरक्षित , और अंधियारे जीना सीख लिया...........
कोई राज कुमार आएगा उसे आजाद कराएगा ,
ये ही सपने उसे अब अच्छे लगने लगे ।

बंद कोठरी में कैद एक अबला की कहानी ...............



© @herry