...

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जरूरी हैं क्या
हर बार मैं ही झुकूं
जरूरी है क्या

इस बार तुम झुक जावोगे
नाक तुम्हारी कट जायेगी क्या

ऐसे तो बड़े सुरमा बने फिरते हो
तुम्हारी औकात दिखा दी जल गई क्या

क्या हुआ आज जो मेरा
सब्र का बांध टूट गया

तुम रोज बोलते आज मैंने
भी पलट कर कुछ बोल दिया

क्यो बर्दास्त नही कर पाए
हक़ीक़त से जब तुम्हारा सामना हुआ

सोचो कैसे तिल तिल करके मैं जीती हुँ
तुम्हारे कड़वे बोलो को शहद समझ घूंट घूंट पीती हुँ

आज तुमने पी लिया तो क्या गुनाह कर दिया
दिल मेरा चोटिल था आज मैंने भी वार कर दिया

थक गई थी मैं सब सितम सहते सहते
हर बार का हिसाब मैंने एक झटके में आज ले लिया