...

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ख़त
कई ख़त लिखे तुमको मैंने
मगर भेज न पाया एहसास मेरे,
बूंद बूंद श्याही की हर बूंद में प्यार सिर्फ़ तुम्हारा था
मगर पढ़ पाए तुम सिर्फ़ अल्फाज़ मेरे,

खोने का डर लिखा था, पाने का अभिमान लिखा
सीने में दिल कितना तन्हा, आंखों में बसा संसार लिखा,
पढ़ लेती जो आंखे हर बार तुम्हे देख कहा करती थी, मेरा प्रेम ही क्या पूरा संसार तुम्हीं में बसा करता था..

बरसों हो गए हर कोना हर चौबारा खोजा करता है दिल, वक्त के समंदर में खोई तुम बस तुम्हे मोती समझ खोजा करता है दिल..

कई ख़त लिखे तुमको मैंने
मगर भेज न पाया एहसास मेरे,
श्याही अब रक्त सी लगती है जो ख़्वाब बहाया करते है, असंख खयाल बुन कर दिल लिखा करता है, वक्त का दीमक अब प्रेम पे हावी है,
जीवन थे तुम कभी अब बस ज़िंदगी की प्यास हो,
भेजे थे अल्फाजों में कैद एहसास मेरे
मगर पढ़ पाए तुम सिर्फ़ अल्फाज़ मेरे...

© khanabadosh_2207