...

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उसरी नदी
अतीत से वर्तमान में
जब झांकती हूं
तो "उसरी" मुझे
बहुत ही
बदली बदली सी दिखती है

कभी नन्हे नन्हें
पैर हमारे
"उसरी " की रेत पर
खेलते हुए
धस धस
जाया करते थे
किन्तु अब
रेत उतने दिखते नही...

मुझे याद है
"उसरी" का
साफ पारदर्शी जल
जिसमे
छोटी छोटी मछलियां
अठखेलियां करती
दिख जाया करती थी...

और हाथ में
मछलियों का गुच्छा थामे
सुबह सवेरे का
वह दृश्य
जो किसी ग्रामीण
के रोजी का
साधन हुआ करता था...

"उसरी"गांव की
एक मात्र नदी
जो सिंचाई का साधन
भी हुआ करती थी...

कहते हुए
मुझे याद आई
गर्मी की वह शाम...
नदी के किनारों पर लगे
ककड़ी,खीरा,तरबूज के
वह खेत
जहां पर पल भर को
ठहरना भी
किसी को ताजगी से
भर देता था...।