...

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तुम्हारा जाना
तुम्हारे जाते ही बंद कर ली
थी मैने अपनी मुट्ठी को
जो शून्य पड़ चुकी थी
दबा लिया था अपने
सूखे होठों को
जो कुछ कहते कहते
रूक गई थी
अपलक निहार रही थी तुझे
मेरी पथराई हुई आंखे
सांसे रुक रुक कर चल रही थी
तेरे जाने की आहट जैसे
लग रहा था मेरे कानो
पर कोई हथौड़े से
वार कर रहा हो
दिल जोरों से धड़क रहा था
कहने को तो तुम जा रहे थे
आसान था तुम्हारा जाना
मगर कठिन था मेरा संभलना
लड़खड़ाते कदमों से आगे
बढ़कर मैं तुम्हे रोक
लेना चाहती थी
तुम्हारा हाथ पकड़ कर खीच
लेना चाहती थी
तुम्हे आगोश में भर कर
तुम में समा जाना चाहती थी
मगर तभी मैने अपनी
खाली हथेलियों को देखा
तुम जा चुके थे
और फिर मैने अपनी
मुट्ठी को बंद कर लिया
जो शून्य पड़ चुकी थी ।।

By Archana Srivastava

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© Hamari Adhuri kahani