...

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प्रतीक्षा
प्रतिक्षा का
आखरी पड़ाव कहूं
या कहूं इसे
खुलता
मुक्ति का द्वार...

जब भी कोई
माया, मोह
क्रोध, लोभ त्याग कर लौटा ...

प्रतीक्षारत
व्यक्ति का पात्र
हमेशा
खाली ही रह गया।