...

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दिल
चिटठियों से ईमेल्स हो गये
और ईमेल्स से टेक्स्ट
ज़रूरतों से मुखौटा बदले
और बदले सेक्स के निचे
बेडशीट्स के सेट
मॉर्डर्नाईजेशन के भीड़ में
प्यार बड़ी मेहेंगी है यहां
और हवस बड़ी सस्ती
जैसे पानी की बोतल हो
रेल के डिब्बे में
वो रेल नीर वाली
यारी यहां पैसो भरी जेब सी
और दौलत पे खड़ी हमारी देश भी
यहां तो अपने ही भेष बदलकर आते है
कौन कहाँ खंजर लिए खड़ा
आखिर देखा किसने है
अंधेरों में कौनसा सौदा हुआ
पता किसको है
पर मौसमों के बिच ना
दिल हार ही जाता है
किसी को देख
कोई आँखों में उतर ही आता है
किसी की मुस्कान दिल छू जाती है
कोई पास आकर
धड़कनो की रफ़्तार बढ़ा ही जाता है
के साँसों की उथल पुथल मची होती है
इतने मॉडर्नाईजेशन के बाद भी
दिल तो बुद्धू ही रहा है
के अब भी सब बदलके भी
दिल ओल्ड फैशन वाला ही रह गया है।।





© KALAMKIDIWANI