...

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!!बेवसी!!
अंधेरे की वो जलती आँखे,
बेवसी के वो सारी बाते,
रात की वो काली सन्नाटे,
की थी गाली,
वो तो थे बेवस
शैतान थे दस,
खून सने पंज़े थे,
नाखूनी शिकंज़े थे,
गिद्धो का वो हमला था,
रोम रोम सहमा था,
चीखे सब घुट गयी,
मिन्नतें सब मर गयी,
छिन गयी सारी खुशी,
बस बाकी बची
बेबसी।।
क्या क्या लूटा,
क्या क्या छूटा,
कैसे हम बताये,
ज़िल्लत का तेज़ाब लिए,
कैसे अब ज़िया जाये,
शैतानी सितम से हम शर्मिंदा है,
कैसे कह दे अब हम ज़िंदा है!!!