...

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" लाखों दूरियाँ "
" लाखों दूरियाँ "


लाखों दूरियाँ और रुसवाईयां हों

सनम, हमारे दरमियाँ..!


फिर भी तुम मुझे याद करने के

वास्ते फ़ुरसत के लम्हों को

तलाशोगे..

इन बंजर फ़िज़ाओं मे तन्हाई से

गुजारिश करोगे..!


फ़ासले दिल में कभी भी कम नहीं

होंगे..

मैं मर कर भी, मेरा वजूद तुम्हारे

दिल में

हमेशा जिन्दा रहेगा, यह देखना

तुम..!


जीतें जी तो बेहिसाब रज-रज कर

रुलाया और तड़पाया है, तुम ने मुझे

ओ बेदर्दी..!


यूँ जिन्दगी रहते हुए तो जमाने के

सामने कभी भी मुझे क़बूलना,

तुम्हें ना़ग़वार गुजरा..!

मेरे जनाज़े और कब्रग़ाह में भी

शामिल होने की जहमत न करना

तुम ओ बेर्मरवत..!

वर्ना उसी वक़्त मेरे नासूर जख़्मों

की आह, भयानक चीख में तब्दील

हो जाएगी..!


लेकिन मेरे जाने के बाद देखना तुम

कि हर रोज़ हर लम्हों में..

कैसे तिल-तिल कर तुम भी खून के

आँसुओं में नहाओगे..?

कभी, कहीं भी सुक़ून के वास्ते तुम

देखना किस हद्द तक तरस

जाओगे..?

जरूरत पड़ने पर मुझ पर हक़

जताया और फिर गै़र कह दरकिनार

कर दिया,

यह तुम्हारी फ़ितरत में शामिल है..!


तुम्हारे गुनाहों के लिए ग़र माफ़ मैं

कर भी दूँ..

लेकिन नाइन्साफ़ी जो की है तुम ने..

मेरे साथ उसका हिसाब तो जरूर हो

कर रहेगा..!

🥀 teres@lways 🥀