...

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वो मेरा हमदर्द था जानने वाला
वो मेरा हमदर्द भी और था अज़ीज़ जानने वाला...
वो मेरे हर एक बात को भी था अच्छे से मानने वाला...

बना कर एक पल में अजनबी वो यूं मुझको....
लगाकर ज़र्ब खुशियों पर गया वो मेरा पहचानने वाला...

कर गया तन्हा इस तरह से के फिर मैं बस ना सका....
बिना कुछ बोले गया मुझको यूं उजाड़ने वाला...

सितम ये हुआ के उसको इस तरह से था सजाया गया...
ना किया उसने कोई शिकवा जो था सादगी से ज़िंदगी गुज़ारने वाला...

गया था मैं भी उसको मनाने के उठ कर बस बैठ जाए ...
उसको आई थी ऐसी नींद के अब कहां था वो जागने वाला ...

उठाया था मैंने भी उसको जब अपने काधों पर ...
याद आ रहा था उसका मेरे कंधे पर सिर रख कर सो जाना...

बहुत पसंद था उसको सफ़ेद रंग का लिबास अख़्तर...
ये कहां मालूम था वो आएगा उजले मलबूस में आखरी रुखसत को जाना ...

© sydakhtrr