...

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आगोश ए उल्फत
लिपट कर तू तो सोती है आगोश ए उल्फत में
तुझे अब लुत्फ आता है बहुत , रस्म ए मुहब्बत में

तेरी जुल्फों के सायों में ,तेरी दिलकश निगाहों में
में अक्सर डूब जाता हूं तेरी बाहों के घेरों में

तड़पता हूं ,सिसकता हूं,बहुत बैचेन रहता हूं
तेरी पाक ए मुहब्बत में मगर महफूज रहता हूं

तुझे क्या क्या बताऊं में ,तुझे क्या क्या दिखाऊं में
के मैंने क्या क्या खोया है तेरी चाहत की सोहबत में
© SYED KHALID QAIS