...

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तुम्हारे नाम....
कि,दिल का वो परिंदा भी आजाद कर दूं
दबी उन बातों को तुम्हारे नाम कर दू
कभी सपनों का महल नहीं बनाया,बनाया था मिट्टी का घर
कहो तो घर की उस मिट्टी को तुम्हारे नाम कर दू
रंज तुमसे तो कभी हो ना सकी,बची कुछ रंजिशो को भी नाकाम कर दूं
ना जाने क्यों आज चांद को बस निहारने का मन करता है
कहो तो आज की नींद भी तुम्हारे नाम कर दूं.....
© priya writes....✍️