...

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दहलीज़
कभी मन में ना आया
दहलीज़ लांघ ना

जाते भी तो कहा जाते
जिंदगी गुजार दी इसी

उम्मीद में यही घर तो
मेरा घर है

जिम्मेदारियां पूरी हो गई
फिर भी और ज्यादा बढ़ गई
बड़ा हुआ जब घर संसार

बातें हुई फिर हजार
फिर भी ना पार की दहलीज़
यही सोच कर चुप हो जाते
अब ऐसा माहौल कहां

दहलीज़ लांघते वक्त भी
सोचते नहीं
हो जाएं चाहे घर बर्बाद
जैसे संस्कार वैसे विचार ।