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अनचाहा सफर
एक सफर में चली,
जिसका छोर कोई भी नहीं।
कई मिले राह में,
चन्द ठहरे, और रुका कोई भी नहीं।
में भी किसे बोलती रुको...!!
हाथ थाम कर चलते है।
ऐसा कोई मिला ही नहीं।
अभी भी यही ठहरी हूं,
और सहारा कोई भी नहीं।
सबको कुछ न कुछ हासिल,
मेरे दरिया का साहिल कोई भी नहीं।
© Pushp
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