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हमारे छांव
#वर्णाक्षरमनोहारी
फलदार ही नहीं तो ये छांव है,
दुःख सुख के ये सम भाव है।
बिन इनके न कहीं ठहराव हैं,
बिन इनके दिखें बस अभाव है।
तिनका तिनका न बिखरें घरौंदा,
आंखों का पानी कह रहा ये तो गांव है।
फ़िक्र इनकी आशिर्वाद है जो
मंजिल की और ले जाए ये तो नाव है।
आसान हो जाती है ज़िंदगी का सफ़र,
वो हमारे सपनों का बहाव है।
वो पेड़ है आंगन के हमारे बुजुर्ग,
हमारे रहन सहन के सुरक्षा के ताव है।
जीए वो हजार साल हमारे स्वार्थ के सुगंध है,
रब से दुआ है रहे वो जिंदादिल स्वभाव है।
© Sunita barnwal
फलदार ही नहीं तो ये छांव है,
दुःख सुख के ये सम भाव है।
बिन इनके न कहीं ठहराव हैं,
बिन इनके दिखें बस अभाव है।
तिनका तिनका न बिखरें घरौंदा,
आंखों का पानी कह रहा ये तो गांव है।
फ़िक्र इनकी आशिर्वाद है जो
मंजिल की और ले जाए ये तो नाव है।
आसान हो जाती है ज़िंदगी का सफ़र,
वो हमारे सपनों का बहाव है।
वो पेड़ है आंगन के हमारे बुजुर्ग,
हमारे रहन सहन के सुरक्षा के ताव है।
जीए वो हजार साल हमारे स्वार्थ के सुगंध है,
रब से दुआ है रहे वो जिंदादिल स्वभाव है।
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