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"कौन था वो कहाँ गया?"😶
अक्स को मेरे मज़ाक समझे मेरी ज़िन्दगी को एक शोर
कोइ मगर वाकिफ़ कहा ये दास्ता है कुछ और
हर दर्द को दिल मे छुपा लेता हूँ
कोइ गर पूछे तो इतना बता देता हू
ज़िन्दगी बेह गयी उधर और हम यहा इस पार है
खुशियो का तो पता नहीं साहब गम बडे बेकरार है
खो गये वो पल जो मेरे फिर मुझे कहा मिले
उन मचलती नीव पर बस उम्मीदो के मकान गिरे देखके मुझको मगर जी भर के आन्खे रोती है
कहती है के ज़िन्दगी कुछ ऐसी ही तो होती है
टूटी गुल्लक सपनो की अब क्यु तुझे वो मका मिले
सुन ज़मीनो के सफ़र अब क्यो तुझे आस्मा मिले
रन्जिशे थी रात मेरी रात अब तो बह गयी
तेरी ही चन्द ठोकरे तेरी कहानी कह गयी
लो बन गयी एक दासता क्या नाम लेगी वो मगर
बिखरे से इस साहिल को अब क्या थाम लेगी वो मगर
छुप गए सारे चिराग हर नज़र ने रुख फ़ेरा है
तुम्को लगे अन्धेरा है मगर चान्द अब भी मेरा है
कुछ कही बाते मगर कुछ गिने अह्सान भी
कर दिया ज़खमी मुझे और बन गये इन्सान भी
तनहा ही खुश रहता हू अपनो का ज़माना कहा
ज़ख्म है सजावट मेरी अब मुझे जाना कहा
मिल गया सबको सुकून मुझ दीवाने को छोड़ कर
लो सो गया गहरा मैं एक ज़िन्दगी को औढ्कर
पलटेगा एक रोज वक़्त कहता था दीवाना यही
हर कहानी दिखेगी मेरी मैं नही दिखूँगा कही ढून्ढोगे तड़पकर के जाने कहाँ पे रहता था कहाँ गया वो हकिकत जो खुद को खुद का कहता था
ढून्ढोगे मुझको कँहा कोइ नही था जानता खामोशी का एक मन्ज़र था जो मुझको बस पहचान्ता
अन्देखी खामोशिँया वो मानती थीं अपना मुझे
ढूँढ्ना मुझको वहाँ बस यही कहेगी वो तुमहे आया था यहाँ हकिकत टूटे मुसाफ़िर ए लिबास मे
मर गया वही हकिकत अपनो की तलाश में ।
© Haquikat