...

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ग़ज़ल
किर्चियाँ इनकी भले रोज़ उठाते रहना
अपनी पलकों पे मगर ख़्वाब सजाते रहना

ऐ ख़ुशी मिल के तुझे, दिल को सुकून आया है
फिर मुझे भूल न जाना यूँ ही आते रहना

अ़हद-ओ-पैमान कहाँ पूरे हुआ करते हैं
रस्म-ए-दुनिया है, सो बस ह़ल्फ़ उठाते रहना

दूर जाना है चले जाओ मगर याद रहे
अपने होने का भी अह़सास दिलाते रहना

अब तअ़ल्लुक नहीं टूटेगा किसी आँधी से
हमने सीखा है दरख़्तों से निभाते रहना

या सुकून आयेगा या होगा तकल्लुफ़ सुन कर
ह़ाल जैसा हो ब-हर-ह़ाल बताते रहना

गर्द जम जाती है रिश्तों की किताबों पे "ह़यात"
वक़्फ़े-वक़्फ़े से इन्हें पढ़ना, पढ़ाते रहना
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