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प्रेम
किसी ने प्रेम की परिभाषा पूछी तो कल्पनाओं में खो गई
आसान सा दिखने वाला यह प्रश्न अत्यंत कठिन मालूम होता है
बहुत प्रयत्न करने के पश्चात जो समझ आया वह है👇

''प्रेम मोहन की बंसी है ,जिसकी धुन सुनकर राधा मोहित हो जाती
प्रेम शिव है ,जिसके लिए पार्वती तपस्या करने जाती है
प्रेम वह झरना है जिसमें खोकर सब मौन हो जाते हैं
प्रेम आत्माओं का मिलन है , जिसमें शरीर का कोई अस्तित्व नहीं रहता
खुद से किया हुआ वादा खुद के प्रति समर्पित होना प्रेम कहलाता है
प्रेम कवि की कलम है, जिसमें कल्पनाएं बस आती चली जाती है
प्रेम संसार है जो मनुष्य को परम आनंद तक पहुंचती है''✍️