...

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सोईं ख़्वाहिशें
आज फिर,
उसकी याद आई,
ऐसा नहीं कि,
रोज़ न, आती हो।

मगर,आज,
जाने क्यों?
झिंझोड गई हृदय।

करे झंकृत,
मत पूछो तुम,
क्या कया?
ख़्वाहिशें जो सोईं।

एक क्षण,
जो नहीं भूले,
कैसा रिश्ता?
मन अक्सर बोले।

लगे सब,
कुछ न होकर,
है हर जगह,
पर,न था मुकद्दर।

इतनी दुआ,
मिले खुशियां,
गमों से दूर,
"गिल"बढ़े बस नूर।

© Navneet Gill