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हाल-ए-दिल............✍🏻
राज़-ए-दिल को आहिस्ता से उठाया करों
तुम हाल-ए-दिल को ऐसे ना छुपाया करों
ख़ामोशी को लबों पे लाकर ज़रा तोड़ दों
इज़हार-ए-इश्क़ को धीरे से सजाया करों

ज़ज्बातों को अल्फ़ाजों में ज़रा बयां होने दें
इश्क़ की कहानी को किताबों में लिखाया करों
आखिरी मुलाकात का ज़िक्र ज़रा गुनगुना दों
तुम हाल-ए-दिल को पन्नों पे यूं उठाया करों

दिल की तसल्ली के लिए बहाने बंया कर दों
तुम नजदिकियों के ज़िक्र यूं ना छुपाया करों
इंतजार का गुज़रता हर इक पल अश्कों में है
हाल-ए-दिल के करार को ज़रा तो बताया करों

आहिस्ता - आहिस्ता उस सफ़र को समेट ने दों
तुम मोहब्बत-ए-इज़हार से यूं ना जलाया करों
सुना है यहां नज़र-अंदाजी का खेल मशहूर है
तुम झूठे मूठे इल्ज़ामों का शोर ना मचाया करों

दिल की उलझनों का भी इम्तिहान होने लगा
फासलों के ज़िक्र को सवालों में ना उठाया करों
मेरे चेहरे का तुम आखिरी दीदार ही करा जाओ
हाल-ए-दिल के हालातों को यूं ना जलाया करों

© Ritu Yadav
@My_Word_My_Quotes