...

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अब थाल अपनी बदल गई है
अब थाल अपनी बदल गई है,
चाल भी अपनी समहल गई है ।।
बॉडी जो ढीली ढाली थी ,
उचक्क उच्चक के सुधर रही है।
अब थाल अपनी बदल गई है।।

समोसे कचौरी रोज है दिखते ,
मुंह में जाने को है तरसते ।
रस भरी जलेबी याद नही अब।
पेट की हालत बदल गई है।
अब थाल हमारी बदल गई है।

गुरु हमारे बड़े चतुर हैं ,
ज्ञान जो देते बड़ा मधुर है।।
बाते करते संज्ञान है लेते ,
सोच हमारी बदल गई है।
अब थाल अपनी बदल गई है ।

संदेश रचित








© SandeshAnkita