...

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रिश्ते...
ज़िंदगी के रिश्ते एक मुट्ठी भर से ज्यादा नही थे
जो भी था रिश्ता एक घने कोहरा जैसा था
जो बूँद बूँद पिघल रहै थे
स्पष्ट हो रहे थे, दुनियावी रिश्ते
शीशे की तरह साफ,
फिर जब हो ही
गई यात्रा पूरी, हर एक रिश्ते की
बढ़ ही गए वो आगे अपने अपने अहकार
और मजबूरी में
तो छूटते गए रिश्ते घने कोहरे में !
फिर कभी नज़र न आने के लिए...✍
jaswinder chahal
26/5/2024
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