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अकेले (मन का अकेलापन)
अकेले (मन का अकेलापन) मैं, मैं अकेले ही चली आ रही हूं सदियों से, मैं अकेले ही चली जाऊंगी इस जहां से भी।
मेरे महबूब, तुझे तेरी हर अदा मुबारक हो, तेरा मिज़ाज, तेरी बात, तेरी मसरूफियत मुबारक हो।
मैं जीती आ रही हूं तनहाईयों में, मैं जीती ही रहूंगी तनहाईयों में।
हर दफा छोड़ा है तुमने मुझे, मझधार में, फिर क्या नई बात है, आज की इस बात में।
जितना सताना है सता ले ऐ जिंदगी, हम भी डटे रहेंगे, जब तक मौत नहीं आती।
बंजारों से भटक रहे हैं जिंदगी के काफिले, एक उम्मीद, जरा आस और बहुत जान अभी बाकी है।।
© 🄷 𝓭𝓪𝓵𝓼𝓪𝓷𝓲𝔂𝓪