ज़िन्दगी जाती कहाँ
ज़िन्दगी जाती कहाँ
ये सोचते सोचते
बत्तीस साल बीत गये
कुछ करते फिरते
छुपाकर रखे थे
तकिये के नीचे
भीग गए सारी ख्वाहिशें
आसूँ में बहते बहते
उठाओ कलम अपनी
अभी भी वक़्त बाकी है
हम अख़बार में आ गए
सब लिखते लिखते
© prashanth K
ये सोचते सोचते
बत्तीस साल बीत गये
कुछ करते फिरते
छुपाकर रखे थे
तकिये के नीचे
भीग गए सारी ख्वाहिशें
आसूँ में बहते बहते
उठाओ कलम अपनी
अभी भी वक़्त बाकी है
हम अख़बार में आ गए
सब लिखते लिखते
© prashanth K
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