इजहार- ए- इश्क़
इजहार-ए-इश्क़ क्या करूँ
गुलाब दूँ, या खुद को तुझ पे वार दूँ।
निहारूँ यूँ ही हर वक़्त या
इस पल इन पलको को आराम दूँ।
देख, कहीं नजर ना लग जाए
तु कहे गर, तो नजर तिरी उतार दूँ।
गँवारा नहीं छूना तुमको मगर
जो इजाजत दे, तो तुझे मैं संवार दूँ।
फकीर हूँ, कुछ नहीं पास मेरे...
गुलाब दूँ, या खुद को तुझ पे वार दूँ।
निहारूँ यूँ ही हर वक़्त या
इस पल इन पलको को आराम दूँ।
देख, कहीं नजर ना लग जाए
तु कहे गर, तो नजर तिरी उतार दूँ।
गँवारा नहीं छूना तुमको मगर
जो इजाजत दे, तो तुझे मैं संवार दूँ।
फकीर हूँ, कुछ नहीं पास मेरे...