...

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जब अंतर मन
जब अंतर मन दुखता है,
हृदय से अश्रु धारा गिरता है,
मंद मंद सिसकियों से जैसे,
पैर तले जमी खिसकता है,
जब अंतर मन दुखता है,
हृदय से अश्रु धारा गिरता है,
भाव बिभोर हो कर के मन,
दर्पण मे जब जब घिरता है,
जलती अग्नि हो या निशा फिर,
काटो जैसा फिर चुभता है,
जब अंतर मन दुखता है,
हृदय से अश्रु धारा गिरता है,
विनय हो या करुणा की बारी,
सुष्क हृदय फिर से भरता है,
जब अंतर मन दुखता है,
हृदय से अश्रु धारा गिरता है।
© Ambuj Pathak