...

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।।अब तुम्हें निकालना है।।
जैसे परबत में से दरिया निकालना है,
ऐसे ही ख़ुद में से अब तुम्हें निकालना है।।

दूसरों को तो संभाला है कई दफा,
इस मर्तबा ख़ुद को संभालना है।।

जिसपे भूले से भी तुम टकरा ना जाओ,
कदमों को ऐसी किसी रहगुज़र पर डालना है।।

यूं तो आंखों से निकले हो कई बार पहले भी,
इस बार तुम्हें दिल से भी निकालना है।।

अपने अंदर तो मुद्दतों से दफ्न हैं हम,
एक तुम बचे थे सो अब उसे भी मारना है।।

माझी ने तो कर ली है डुबोने की तैयारी,
कश्ती को अपना नसीब अब खुद संवारना है।।

एक टीस सी उठती है दिल में रह रह कर,
बस एक आख़िरी आह भरनी है और उसे निकालना।।

उमर तो कैसे भी कट ही जायेगी,
तुम ये समझा दो 'वो' एक लम्हा कैसे गुजारना है।।

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