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शीर्षक - मर्द हूँ हर पल मरता हूँ।
शीर्षक - मर्द हूँ हर पल मरता हूँ।

मुझे करके वादे अपनो से,
फ़िर वादा निभाना होता है।
भले दर्दो ने रखा हो जकड़,
फ़िर भी मुस्कुराना होता है।

ज़िम्मेदारियों के दलदल में,
रात दिन मैं ख़ूब सड़ता हूँ।
बिना रुके बिना साँस लिए,
बस मैं चलता ही चलता हूँ।

दर्द,चुभन मुझमें भी है,
पर मैं नहीं दिखाता हूँ।
नींद मुझे भी आती है,
पर मैं नहीं सो पाता हूँ।

क़ानून का भी मुझपे ज़ोर है,
समाज भी मेरे लिए कठोर है।
ग़लती भले चाहे न हो मेरी,
फ़िर भी ग़लती मैं ही करता हूँ।

हमेशा हमारा ही चरित्र ख़राब बताते,
हमेशा लोग हम पे ही उंगली उठाते,
हमको कभी इंसान समझा ही नहीं,
क्यूँ हम सिर्फ़ जानवर नज़र आते।

कोई बीच बाज़ार थप्पड़ जड़ देता है।
कोई चला हमपर पत्थर देता है।
क्यूँ हमपर ही हमेशा ऐसा होता
क्यूँ नहीं कोई इसका उत्तर देता है।

क्या हमारे लिए कोई कानून नहीं।
क्या हमपर होता कोई ज़ुल्म नहीं।
कहते समानता का अधिकार है,
फ़िर क्यूँ करते भेदभाव ये सरकार हैं।

नारी शक्ति के आड़ में हमें दबाया जाता है,
हमपर बेशुमार झूठा इल्ज़ाम लगाया जाता है।
माना नारी का सम्मान हमेशा करना चाहिए,
पर इसके भेंट क्यूँ पुरुषों को चढ़ाया जाता है।

मुझे किसी के अधिकार से कोई द्वेष नहीं।
पर बता दो क्या ये पुरुषों का देश नहीं।
क्यूँ हमें इतना पीछे धकेला जा रहा है,
क्यूँ हमारे भावनाओं से खेला जा रहा है।

ज़रा इसपर भी सोच विचार करो,
हमें भी अब कुछ अधिकार दो।
कब तक हम यूंही मरते रहेंगे,
हमारी भी तो कोई पुकार सुनो।

©Musickingrk