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काश! वो बचपन लौट आता
स्वरचित एवं मौलिक रचना:–
काश! वो बचपन लौट आता।
वो कागज की कश्ती
वो पानी में मस्ती,
माटी के बने घरोदौं की
वो छोटी सी बस्ती।
काश! वो बचपन लौट आता।
न कोई ख्वाहिश थी
न कोई चाहत थी मन में,
हर ऋतु हरियाली छाई
रहती थी मन उपवन में।
काश! वो बचपन लौट आता।
वो खेल हमारे छूट गए
सब यार हमारे दूर हुए,
याद आते है दिन वो पुराने
हम जिम्मेदारियों से
मजबूर हुए।
काश! वो बचपन लौट आता।
व्यस्त हो गए सब लोग यहां,
दो पल का भी किसी को वक्त कहा,
रात निकल जाती है
बस आंखों में
बचपन की अब वो नींद कहा।
काश! वो बचपन लौट आता।
चेतन घणावत स.मा.
साखी साहित्यिक मंच, राजस्थान
© Mchet043
काश! वो बचपन लौट आता।
वो कागज की कश्ती
वो पानी में मस्ती,
माटी के बने घरोदौं की
वो छोटी सी बस्ती।
काश! वो बचपन लौट आता।
न कोई ख्वाहिश थी
न कोई चाहत थी मन में,
हर ऋतु हरियाली छाई
रहती थी मन उपवन में।
काश! वो बचपन लौट आता।
वो खेल हमारे छूट गए
सब यार हमारे दूर हुए,
याद आते है दिन वो पुराने
हम जिम्मेदारियों से
मजबूर हुए।
काश! वो बचपन लौट आता।
व्यस्त हो गए सब लोग यहां,
दो पल का भी किसी को वक्त कहा,
रात निकल जाती है
बस आंखों में
बचपन की अब वो नींद कहा।
काश! वो बचपन लौट आता।
चेतन घणावत स.मा.
साखी साहित्यिक मंच, राजस्थान
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