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बन जाऊँ
बन जाऊँ मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम मैं,
पर तेरा मन कहाँ पवित्र सीता सा।

बन जाऊँ कृष्ण कन्हैया मैं,
पर तेरा प्रेम कहाँ निश्चल राधा सा।

बन जाऊँ शिव, शंकर, महादेव मैं,
पर तेरा तप कहाँ प्रिय गौरा सा।

बन जाऊँ नर नारायण मैं,
पर तेरा समर्पण कहाँ लक्ष्मी सा।

बन जाऊँ मजनू, रांझा, सत्यवान मैं,
पर तेरा साथ कहाँ लैला, हीर, सावित्री सा।

बन जाऊँ तेरा मान कवच ,समस्त मैं
पर तेरा प्रेम कहाँ मिले है पूरा सा ।।

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