...

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जब उम्मीदें मरती हैं...
कुछ बातें, कुछ लफ़्ज़, ज़हन में ऐसे असर कर जाते हैं
शोक, निराशा और अंधेरा दिल में घर कर जाते हैं
केवल सांसों का रुकना ही तो, मौत नहीं कहलाता है
जब उम्मीदें मरती हैं तब, हम भी थोड़े मर जाते हैं

आंसू रोकने की खातिर, बांध कोई बंध जाते हैं
आवाज़ कहीं दब जाती है, और गले रुंध जाते हैं
टूटे दिल के टुकड़े सीने में, कुछ ऐसे गढ़ जाते हैं
जब उम्मीदें मरती हैं तब, हम भी थोड़े मर जाते हैं

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