...

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शीर्षक - छोड़ रहा।
शीर्षक - छोड़ रहा।

चेहरा अपना रंगत छोड़ रहा।
क़ल्ब ज़िस्म का संगत छोड़ रहा।
ग़ाफ़िल बन चुका ज़हन अब,
साथ धीरे-धीरे अनवरत छोड़ रहा।

मुर्दनी की बन रही लकीरें,
बदन अपनी हरक़त छोड़ रहा।
बख़्तर टूट चुका ज़िंदगी का,
ज़ीस्त जीने की चाहत छोड़ रहा।

मुनफ़रीद बैठा एक कोने में,
आँखें दरियाँ अनहद छोड़ रहा।
ख़ुदकी तब्सिरा ख़ुदसे कर,
ख़ुदक़ा साथ ख़ुद ज़द छोड़ रहा।

मुसर्रत खो बैठी ज़िंदगी ये,
फ़ूल ख़ुशबू बेग़ैरत छोड़ रहा।
रोशनी ने ली करवट बदल,
मौसम भी आँखों में गर्द छोड़ रहा।

खोखला हो चुका तन पूरा,
हौसला भी ये बरक़त छोड़ रहा।
शय्या की ओर क़दम बढ़ रहे,
शायद आत्म अब घट छोड़ रहा।

©Musickingrk