...

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मैं मुक्त हूं
हठ हैं
विनम्र होने को...

अभिमान
है क्या
अब तक जाना नही...

हिंसा
मुझे डराती है...

भय
किस बात का
जब स्वयं पर
भरोसा हो...

निंदा चुगली
किसकी करू
खुद को
बेहतर पाती हूं...

आमर्ष...
मैने तो तप किया है ...

ईर्ष्या
कैसे हो
जब सब को
समझने की चाह हो...

घृणा
किससे करू
धारती की
एक प्राणी तुच्छ हूं...

उपेक्षा...
दंश मैंने देखा है...

द्वेष (विरोध)
रखती हूं
हर उस बात के लिए
जो इंसानियत के खिलाफ हो ...

हां मैं मुक्त हूं इन सब से 😊