...

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बेपरवाह
यार तुम कैसे हुए ऐसे बेपरवाह
जान छिड़कते थे कल तक
करते थे न किसी की परवाह
यार तुम कैसे हुए ऐसे बेपरवाह

आकर लिपट जाते थे ढुंढ ढुंढ
जैसे हूं तुम्हारी जन्मो की चाह
ऐसी मस्तियों के ‌बन मालिक
रग रग कर देते थे जवां
यार तुम कैसे हुए ऐसे बेपरवाह

नयी नयी पोशाकों से सजा सजा
कहीं दूर वादियों में गुलाब हो खिला रहा
अब रंग और दिल में समाते नहीं
दिल इतना खुश जमाने से नहीं
यार तुम कैसे हुए ऐसे बेपरवाह

क्या खता हुई जो बिगड़ बैठे हो
वो नजरों का दीवानापन छुपाने लगे हैं
क्या फिर किसी नजरों की कटार से हुए घायल
या जला दिल में कोई जलन, जलाने चले हो
यार तुम कैसे हुए ऐसे बेपरवाह


© सुशील पवार