...

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बड़ा दर्द देती है ये जिन्दगी
बड़ा दर्द देती है.............ये जिंदगी
कैसे मैं इसे मजेदार लिख दूँ,
महज़ दो लफ्ज़ क्या लिख दिए मैंने,
फिर,कैसे मैं खुद को 'गुलजार' लिख दूँ।

कोई आया है गरज से अपनी दिल में मेरे
फिर,कैसे मैं उसको इश्क़ का तलबगार लिख दूँ ।

बड़ा दर्द देती है ये जिंदगी..........।

इजाजत तो मैंने ही दी थी उसे दिल से खेलने की
फिर कैसे मैं उसको गुनहगार लिख दूँ,
और
आज वो जा रहा है सब कुछ तबाह करके मेरा
फिर कैसे मैं उसको ख़बरदार लिख दूँ।

बड़ा दर्द देती है ये जिंदगी..........।

उसने मुझे उस नजरिये से चाहा ही नहीं
कैसे मैं इसको प्यार लिख दूँ,
मैंने आँसू देखे थे उसकी आँखों में
फिर कैसे मैं इसको अपनी मोहब्बत की हार लिख दूँ

बड़ा दर्द देती है ये जिंदगी..........।

चेतन घणावत स.मा.
साखी साहित्यिक मंच, राजस्थान
© Mchet043