...

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निर्भया


भय में रहती कहलाती है निर्भया
मानवता की देखो डूब रही नैया,
क्रूरता पर लगा फिर सरकारी लेप
हां ,आज हो गया एक और रेप

शरीर तो जलते होंगे रोज
आज जली संवेदना और आत्मा,
कैसे हंसते रहे दरिंदे देखो
रोती रही आज एक और मां

रहम की मांगी होगी भीख
और हाथ भी होंगे जोड़े,
टूट गई होंगी मां की चूड़ी
और जल गए दहेज़ के जोड़े

रातें भी डरती इन दरिंदो से
इन खूनी शैतानी पंजों से,
मासूम बिटिया क्या बच पाएगी
हत्त्थे फ़िर कोई चढ़ जाएगी

सुबह तक सब भूल जायेंगे
भेड़िये फिर शिकार को आएंगे,
सिस्टम की होगी फ़िर चीर फाड़
यूं हीं होते रहेंगे क्या बलात्कार

यूं हीं होते रहेंगे क्या बलात्कार

यूं हीं होते रहेंगे क्या बलात्कार
© Abhinav Anand