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स्मरण
ए सूरज ए नदियां
बड़ी खूब सूरत
हैं झीलें तुम्हारी
इजाज़त जो हो
तो दो घूंट पीकर
खतम कर लूं मैं
अपनी सारी बीमारी
तुम्हे तो पता है
मैं भोला हूं कितना
नहीं कुछ मिले
तो ये मिट्टी तुम्हारी
सुगंधित है इतनी
की मिल जाए तन
तो महक जाए मन
और सूरत हमारी।।
#स्वतंत्रता_प्रयास
बड़ी खूब सूरत
हैं झीलें तुम्हारी
इजाज़त जो हो
तो दो घूंट पीकर
खतम कर लूं मैं
अपनी सारी बीमारी
तुम्हे तो पता है
मैं भोला हूं कितना
नहीं कुछ मिले
तो ये मिट्टी तुम्हारी
सुगंधित है इतनी
की मिल जाए तन
तो महक जाए मन
और सूरत हमारी।।
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