...

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कुछ राहे........
राहे कभी मिलती , रहती है अंजानी सी,
पर हम तो बस, उसी को सही मान पाए........

जो मंजिल की तरफ, ले तो जाती है ही
पर राह चलते सारे, उसूल हमारे बदल ना पाए.......

कही चलते चलते, उस राह पर फिर,
हम खुद ही कहीं, फिर खो ना जाए........

जो मंजिल जब, हमसे मिलने को आए
हम उसे पाने के, काबिल भी ना रह जाए........

जो चलते चलते कहीं,
इतनी दूर भी, ना चले जाए,
जो हम फिर, अपनी पहचान से खुद,
कभी नजरे भी, ना मिला पाए.........
© PradnyaBhide