...

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सूर्य का पैगाम
परीक्षा का कठिन दौर,
सुनाये जिंदगी अविरल शोर।

भोर का सूर्य दे "पैगाम",
ढूंढ ले चल,नया क़ोई मुकाम।

जातीं अंधेरे को निगल,
बजा करके रोशनी का बिगुल।

किरणें लाये नुई स्फूर्ति,
करें"संचार" माध्यमों की पूर्ति।

शरारतें करतीं "नटखट",
मुकद्दर पे देतीं दस्तक झटपट।

मान खुद को बेहतरीन,
कर व्यवहार हरक़दम ज़हीन।

लगे वीरान अगर"मन",
कह केवल सुस्वागतम् जीवन।

होती प्रकाश में नहाई,
"गिल"कर परिश्रम की कमाई।
© Navneet Gill