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दैहिक सौंदर्य से परे
पहचान मेरी, तू दैहिक सौंदर्य से परे लिखना
सीता सी पावन रही, मीरा सा करती नेह लिखना।
पहचान मेरी तू, निजी हित से परे लिख देना
यशोधरा सा कर्तव्य,उर्मिला सा प्रतीक्षा लिख देना।
पहचान मेरी तू ,दहलीज के भीतर आंगन की तुलसी,
सड़कों पर पली, गुलमोहर सा तप कर खिलना लिखना ।
पहचान मेरी तू, दैहिक सौंदर्य से परे
स्वयं की वजूद तलाशती एक पथिक लिख देना।
सीता सी पावन रही, मीरा सा करती नेह लिखना।
पहचान मेरी तू, निजी हित से परे लिख देना
यशोधरा सा कर्तव्य,उर्मिला सा प्रतीक्षा लिख देना।
पहचान मेरी तू ,दहलीज के भीतर आंगन की तुलसी,
सड़कों पर पली, गुलमोहर सा तप कर खिलना लिखना ।
पहचान मेरी तू, दैहिक सौंदर्य से परे
स्वयं की वजूद तलाशती एक पथिक लिख देना।
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