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फतवा
फिर मेरा फतवा सुन लो
जीना चाहते हो तो रस्ता अपना बदल दो
आज के वक्त की इन गूंजती तीखी बातों से
तुम्हें ऐतराज है
कहते ऐसा ही क्यों,
हम जलील बहूत
हममें ऐसी ही प्यास है
बातें करते जाने कैसी कैसी
न अदब है न लिहाज है
फिर भी कहते हो
जीने को मगर यही खास है
किन दिशाओं में बह रहे तुम ओ दरिया प्यार के
रहम न रह गया क्या दिल में
एक इसी बात पे तो
अब तक टिकी कायनात है
तब अंगार सुलगा तुम चाहते हो क्या
घर जल जाए प्यार का
और राज करोगे जल जलकर तुम डुब
उस नर्क के ग़र्क में क्या?????
© सुशील पवार
जीना चाहते हो तो रस्ता अपना बदल दो
आज के वक्त की इन गूंजती तीखी बातों से
तुम्हें ऐतराज है
कहते ऐसा ही क्यों,
हम जलील बहूत
हममें ऐसी ही प्यास है
बातें करते जाने कैसी कैसी
न अदब है न लिहाज है
फिर भी कहते हो
जीने को मगर यही खास है
किन दिशाओं में बह रहे तुम ओ दरिया प्यार के
रहम न रह गया क्या दिल में
एक इसी बात पे तो
अब तक टिकी कायनात है
तब अंगार सुलगा तुम चाहते हो क्या
घर जल जाए प्यार का
और राज करोगे जल जलकर तुम डुब
उस नर्क के ग़र्क में क्या?????
© सुशील पवार
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