...

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जन्म में हूं या मौत में
#यात्राकानजर,
कहां से शुरू कहां से ख़त्म
है यह जीवन यात्रा का नज़र
समझ में कुछ न आया है,
न नज़रों में कुछ फंसा पाया है।
न यादों में हमें जीना आया है,
न ख्वाब हसीं देख पाया हूं।
चाहते भी मेरी गुमराह ही रहा,
जीने का हर राह सफर छुपा रखा।
हर वक्त लगा कोई जिंदा मुर्दा हूं
कुछ एहसास क्यों न कुछ होता है।
रिश्तों में बहारों में धड़कता दिल
लचीलेपन का आकर्षण औरों सा क्यों न होता है
इतने में कोई मेरे जीवन में आया
तो लगा आज मै जन्मा हूं।
कुछ बरसों का यह सफ़र
मदहोशी का अलार्म रहा।
नशा तो आज भी उस मोहब्बत का
मगर वही बैराग्य हाथ फिर कैसे थाम लिया।
जहां से कहानी शुरू हुई थी फिर
वही ख़त्म होती नज़र आ रही है।
जीवन वृत्ताकार है जैसे आगे बढ़ने
का कहना चाहना बेवकूफ़ो का काम है।
© Sunita barnwal