...

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प्रेम के दिन
"मैं" बांट लेता प्यार,
हो जब व्यर्थ की तकरार।
थी छोटी जिंदगानी,
बचपन बीता,आया बुढ़ापा गई जवानी।

छोड़ देनी हिदायत,
भूल "शिकवे शिक़ायत"।
है रोज़ प्रेम के दिन,
मत कर कभी एक दूजे से मन को खिन्न।

न,जाने कौन पल?
आये,मृत्यु करके "छल"।
फिर हो पछतावा,
बहेगें आंसू, फूटेगा "आक्रोश" का लावा।

गलतियों को बिसार,
त्याग ख़ामोशी का द्वार।
क्षमा का सूत्र अपना,
लगेगा जीवन फिर ही हसीं सा "सपना"।

छोड़ मेरा,तुम्हारा,
जा,रम बस प्रेम की धारा।
होगी निश्चय जीत,
"गिल" सजेगा लबों पर दिलकश संगीत।

© Navneet Gill