...

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किस्मत कलम✍🏻 की......
किस्मत कलम की क्या खूब रही
हर पल वो काग़ज़ के संग ही रही..!
ना आशा, ना निराशा को अपने संग लाई ..
लग कर काग़ज़ के अंग वो,
अपने रंग से सजती रही....!

ना सुबह की चिंता ना फिक्र शाम की ,
दिन रात वो चलती रही...!
ना रुकती कभी, ना वो थकती कभी,
संग काग़ज़ के वो वफ़ा करती रही..!

ना इल्म है उसे किसी एहसास की,
ना खबर है क्या वो ज़ज़्बात रही...!
एक एक बूंद स्याही की अपनी लबों से गिरा कर ,
वो अपनी वफ़ा की सबूत यूँ सबको देती रही..!

कभी जो रुक जाए, और थम जाए साँसे उसकी,
ज़ुबान काग़ज़ की भी ख़ामोश रही...!
दोनों बेजुबां है, दोनों ही है बेजान,
फिर भी एहसासों मे जान उन्हीं की ही रही..!

जयश्री✍🏻