...

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रिश्ता हमारा उस जन्म का
मिलना हमारा महज इक इत्तेफाक था,
पता नहीं कब जान बन बैठे,वैसे तो
मिलते है रोज जाने कितने ज़माने में
पर आप दिल के मेहमान बन बैठे।

तुमसे बात करते ही दूर हो जाती है
दिन भर की सारी थकान पल में,
तुम्हारे संग जीने के लिए ख्वाबों से
सजा लिया है मकान इस दिल में।

जब हंस के बात करती हो तो, मानो
फूल कोई खिलता है,
बेशक दूर हो तुम हमसे पर यों लगता है
जैसे चांद चकोर से मिलता है।

कुछ रिश्ता है मेरा तुमसे उस जन्म का
यों ही नहीं दिल किसी पर आता है,
चेहरे और भी हसीन है जहां में, पर
जो दिल में होता है,वो ही दिल को भाता है।

तुम आती हो ख्वाबों में, मेरे ख्वाबों की
मेरी कल्पनाओं में बनी सूरत बनकर,
करती हो प्रेम इस 'चेतन' को
प्रेम की एक प्यारी सी मुरत बनकर।

चेतन घणावत स.मा.
साखी साहित्यिक मंच, राजस्थान
© Mchet143